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गंगा दशमी, पर्यावरण दिवस, गंगा दशहरा और सुदशा व्रत पर विशेष

गंगा दशमी, पर्यावरण दिवस, गंगा दशहरा और सुदशा व्रत पर लेख

भारतीय संस्कृति में प्रकृति और नदियों को देवी-देवताओं का स्वरूप माना गया है। गंगा दशमी, जिसे गंगा दशहरा भी कहते हैं, एक ऐसा पर्व है जो न केवल धार्मिक दृष्टि से बल्कि पर्यावरणीय चेतना के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह पर्व ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को आता है, और इस दिन सुदशा व्रत तथा पर्यावरण दिवस के रूप में भी कई लोग इसे मनाते हैं।

गंगा दशमी / गंगा दशहरा:

गंगा दशहरा गंगा मैया के धरती पर अवतरण का पर्व है। मान्यता है कि इसी दिन भागीरथ जी की तपस्या से प्रसन्न होकर माँ गंगा स्वर्ग से धरती पर उतरी थीं। यह दिन “दशहरा” इसलिए कहा जाता है क्योंकि इस दिन दस प्रकार के पाप (मन, वचन और कर्म के) नष्ट हो जाते हैं। गंगा स्नान, गंगा जल का सेवन और दान-पुण्य इस दिन विशेष फलदायी माना जाता है।

सुदशा व्रत:

सुदशा व्रत भी ज्येष्ठ शुक्ल दशमी को रखा जाता है। इस व्रत का उद्देश्य जीवन में शुभता, सौभाग्य और सुख-शांति की प्राप्ति है। “सु-दशा” का अर्थ है “अच्छी दशा”, यानी यह व्रत नकारात्मक ग्रह दशाओं को भी शांति देता है। इस दिन व्रती उपवास रखते हैं, जलदान करते हैं और विशेष रूप से माँ लक्ष्मी तथा भगवान विष्णु की पूजा करते हैं।

पर्यावरण दिवस:

हालाँकि विश्व पर्यावरण दिवस 5 जून को मनाया जाता है, लेकिन भारत में गंगा दशहरा जैसे पर्व अपने आप में पर्यावरण संरक्षण के संदेशवाहक हैं। गंगा को केवल धार्मिक दृष्टि से नहीं, बल्कि एक जीवनदायिनी नदी के रूप में भी देखा जाता है। इस दिन वृक्षारोपण, जल-संरक्षण और नदियों की स्वच्छता जैसे अभियान भी चलाए जाते हैं।

गंगा दशमी, गंगा दशहरा, सुदशा व्रत और पर्यावरण दिवस – ये सभी एक ही दिन आने पर जीवन में धार्मिक, सामाजिक और पर्यावरणीय संतुलन का सुंदर संदेश देते हैं। इस दिन को केवल आस्था से नहीं, बल्कि एक जिम्मेदारी के रूप में भी मनाना चाहिए। जब हम गंगा को स्वच्छ रखें, वृक्ष लगाएँ और पर्यावरण का सम्मान करें, तभी इस पर्व का पूर्ण फल प्राप्त होता है।

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